Saturday, May 25, 2013

Gareeb ladki

तीन वर्षीय बच्ची किताब खोलकर पढ़ने लगी, "अ से अनाल... आ से आम...

एकाएक उसने पूछा, "पापा, ये अनाल क्या होता है?"

"यह एक फल होता है, बेटे।" मैंने उसे समझाते हुए कहा, "इसमें लाल-लाल दाने होते हैं, मीठे-मीठे!"

"पापा, हम भी अनाल खायेंगे..." बच्ची पढ़ना छोड़कर जिद्द-सी करने लगी।

मैंने उसे डपट दिया, "बैठकर पढ़ो। अनार बीमार लोग खाते हैं। तुम कोई बीमार हो! चलो, अंग्रेजी की किताब पढ़ो। ए फॉर ऐप्पिल... ऐप्पिल माने...।"

सहसा, मुझे याद आया, दवा देने के बाद डॉक्टर ने सलाह दी थी– पत्नी को सेब दीजिए, सेब।

और मैं मन ही मन पैसों का हिसाब लगाने लगा था। सब्जी भी खरीदनी थी। दवा लेने के बाद जो पैसे बचे थे, उसमें एक वक्त की सब्जी ही आ सकती थी। बहुत देर सोच-विचार के बाद, मैंने एक सेब तुलवा ही लिया था– पत्नी के लिए।

बच्ची पढ़ रही थी, "ए फॉर ऐप्पिल... ऐप्पिल माने सेब..."

"पापा, सेब भी बीमाल लोग खाते हैं?... जैसे मम्मी?..."

बच्ची के इस प्रश्न का जवाब मुझसे नहीं बन पड़ा। बस, बच्ची के चेहरे की ओर अपलक देखता रह गया था।

बच्ची ने किताब में बने सेब के लाल रंग के चित्र को हसरत-भरी नज़रों से देखते हुए पूछा, "मैं कब बीमाल होऊँगी, पापा?"

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